एक पल सिमटकर बनती
अगले ही पल बिखर जाती
एक बूँद पानी की
एक अतृप्त प्यास थी
कुछ और पाने की आस थी
सिमटते-सिमटते भारी होती जाती
थोडा और थोडा और, यही गीत गाती
एक पल सिमटकर बनती
अगले ही पल बिखर जाती
एक बूँद पानी की
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