Friday, July 13, 2012

गर यूंही चलता रहा ये सफ़र 
मंजिल न आयेगी कभी नज़र 
यूंही गुज़र जायेगा हर मंज़र 
गर यूंही चलता रहा हे सफ़र

गिरा पत्ता अपनी शाख को नहीं लौटता 
बहा आंसू अपनी आँख को नहीं लौटता 
उतरा रंग दोबारा चढ़ता नहीं 
हर रंग इस तस्वीर का उतर जायेगा 
गर यूंही ये सफ़र चलता जायेगा 

बीते पलों को रुसवाई का नाम दिया 
वर्त्तमान को गमे -तन्हाई का नाम दिया 
आने वाले कल को निराशा से भर दिया
कल को मुस्कुराना तू भूल जायेगा 
गर यूंही ये सफ़र चलता जायेगा

दिशा है वाकिफ 
रज़ा है वाकिफ 
जूनून से क्यों अनजान है तू
सुकून से क्यों अनजान है तू 
क्या हर चौराहे पर खड़ा तू यही सोचता रहेगा
"क्या सदा ये सफ़र युहीं चलता रहेगा?"

कुछ हसीन कुछ तनहा,  लम्हे इंतज़ार के 

कुछ मीठे कुछ दर्द भरे,  लम्हे इंतज़ार के

कुछ नशीले कुछ होश में,  लम्हे इंतज़ार के

कुछ हसीन कुछ तनहा,  लम्हे इन्तजार के 
एक पल सिमटकर बनती 
अगले ही पल बिखर जाती 
एक बूँद पानी की

एक अतृप्त प्यास थी 
कुछ और पाने की आस थी 
सिमटते-सिमटते भारी होती जाती 
थोडा और थोडा और, यही गीत गाती 
एक पल सिमटकर बनती 
अगले ही पल बिखर जाती 
एक बूँद पानी की

Thursday, July 12, 2012

कहाँ से कहाँ तक?
यहाँ से वहाँ तक!
सतत खोज मे स्पष्ट लकीरें भी धुन्धला गयीं है
खोज को दिशा देदे हे पिता, कि अब स्पष्टता ढूंढता हूँ
कुछ जवाब देदे, कि सवालों की गूंज में पिस्ता चला जाता हूँ

Sunday, July 1, 2012

एक चीख सी उठती है - कुछ सवालों में
एह आह फिर निकलती है - पर खयालों में 

ज़िन्दगी का नज़ारा वही, फरमान वही
एक राग ये नया सुनाती है,
दिल को देह्लाती है - कुछ सवालों में
एक आह फिर निकलती है - पर खयालों में

परवाना कौन किस शमा का
हर कोई यहाँ परवाना तो बनता है
शमा कई रंग लेती है - कुछ सवालों में
एक आह फिर निकलती है - पर खयालों में