Friday, July 13, 2012

गर यूंही चलता रहा ये सफ़र 
मंजिल न आयेगी कभी नज़र 
यूंही गुज़र जायेगा हर मंज़र 
गर यूंही चलता रहा हे सफ़र

गिरा पत्ता अपनी शाख को नहीं लौटता 
बहा आंसू अपनी आँख को नहीं लौटता 
उतरा रंग दोबारा चढ़ता नहीं 
हर रंग इस तस्वीर का उतर जायेगा 
गर यूंही ये सफ़र चलता जायेगा 

बीते पलों को रुसवाई का नाम दिया 
वर्त्तमान को गमे -तन्हाई का नाम दिया 
आने वाले कल को निराशा से भर दिया
कल को मुस्कुराना तू भूल जायेगा 
गर यूंही ये सफ़र चलता जायेगा

दिशा है वाकिफ 
रज़ा है वाकिफ 
जूनून से क्यों अनजान है तू
सुकून से क्यों अनजान है तू 
क्या हर चौराहे पर खड़ा तू यही सोचता रहेगा
"क्या सदा ये सफ़र युहीं चलता रहेगा?"

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