Friday, July 13, 2012

एक पल सिमटकर बनती 
अगले ही पल बिखर जाती 
एक बूँद पानी की

एक अतृप्त प्यास थी 
कुछ और पाने की आस थी 
सिमटते-सिमटते भारी होती जाती 
थोडा और थोडा और, यही गीत गाती 
एक पल सिमटकर बनती 
अगले ही पल बिखर जाती 
एक बूँद पानी की

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